भारतीय महिला एथलीटों का कमाल

1984 के ओलंपिक में पीटी उषा 400 मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीतने में एक सेकेंड के सौवें हिस्से से पीछे रह गई थीं. लेकिन फिर भी ये दौड़ ऐतिहासिक माना जाती है क्योंकि वो आने वाले एथलीटों के लिए एक मिसाल और प्रेरणा बनी थी. पीटी उषा सिर्फ एक कारण हैं जिसके चलते अन्य खेलों की तुलना में भारतीय महिलाओं ने एथलेटिक्स में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया है. बीबीसी के विश्लेषण के मुताबिक भारतीय महिलाओं ने अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स में 155 पदक जीते हैं. शूटिंग 137 पदकों के साथ दूसरे नंबर पर है. इसके बाद बैडमिंटन (70 पदक) और कुश्ती (69 पदक) का नंबर आता भारतीय महिला एथलीटों ने 1951 से 5 नवंबर, 2019 तक 694 मेडल जीते हैं. इनमें 256 कांस्य, 238 रजत और 200 स्वर्ण पदक शामिल हैं. सिर्फ 2018 में ही महिला एथलीटों ने सभी अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स में 174 पदक जीते थे. हालांकि, सिर्फ पांच महिलाओं ने ओलंपिक में पदक जीते हैं,लेकिन इनमें से कोई भी ट्रैक और फ़ील्ड में नहीं था. लेकिन एशियाई खेलों में,किसी भी अन्य खेल की तुलना में एथलेटिक्स (109) से अधिक पदक आए हैं. हालांकि, एथलेटिक्स में महिलाओं के इस शानदार प्रदर्शन के पीछे तय कारण नहीं बताए जा सकते लेकिन विशेषज्ञ इस सफलता के पीछे कई कारणों का मेल बताते हैं. - बीबीसी स्पोर्ट्सवूमन ऑफ द ईयर अवॉर्ड 2019 क्यों अलग और ख़ास है? - खेल की दुनिया में महिला एथलीटों से कितनी उम्मीद? एथलेटिक्स के प्रचलित होने का एक कारण ये भी है कि इसके लिए बहुत कम बुनियादी ढांचे की ज़रूरत होती है. पीटी ऊषा स्ट्रेंथ बढ़ाने के लिए बीच पर लहरों के विपरीत दौड़ा करती थीं. भारत में कम उम्र से ही बच्चे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में वार्षिक खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं. कोझीकोड के ऊषा स्कूल ऑफ एथलेटिक्स के सह-संस्थापक और पीटी उषा के पति वी श्रीनिवासन कहते हैं कि केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, बंगाल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों में स्थानीय प्रतियोगिताओं में पुरुषों और महिलाएं बराबर संख्या में भाग लेते हैं. - नेहा गोयल: फैक्ट्रियों में काम कर मां ने बनाया सफल महिला हॉकी खिलाड़ी • यूं बदल रही है भारतीय महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की जिंदगी इमेज कॉपीरइटमंजिल अभी दूर है लेकिन, भागीदारी बढ़ने और लोगों की मानसिकता में बदलाव के बावजूद भी भारत को ट्रैक एंड फील्ड में ओलंपिक मेडल लाना अभी बाकी है. ट्रैक एंड फील्ड एक ऐसा खेल है जिसमें दौड़, कूद और थ्रोइंग (फेंकने) से जुड़ी एथलेटिक प्रतियोगिताएं शामिल होती हैं. कई लोगों का मानना है कि इसके पीछे कारण है पर्याप्त संख्या में प्रतियोगिताएं न होना. वी श्रीनिवासन कहते हैं, "कई एजेंसी हैं जो टेलेंट की पहचान करती हैं. जैसे केंद्र सरकार, राज्य और निजी अकादमिया आदि, ये एजेंसी वैज्ञानिक प्रशिक्षण भी प्रदान करती हैं. लेकिन, हम ज़्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाते. अगर हम अमरीका और यूरोप से तुलना करें तो वहां पर अंडर-14 से ही हाई लेवल का कंपीटिशन शुरू हो जाता है." दुती चंद के अनुभव के आधार पर कोच रमेश बताते हैं कि इस कमी के चलते एथलीटों को विदेशों में जाना पड़ता है ताकि अपने खेल में सुधार के लिए बड़े स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकें. लेकिन, हर कोई ऐसा नहीं कर पाता. अन्नू रानी पिछले साल दोहा में विश्व चैंपियनशिप के जेवलिन थ्रो फाइनल में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं. वो कहती हैं, "हाई लेवल की प्रतियोगिताओं में महिलाओं का एक अलग रवैया और आक्रामकता होती है. हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि हम एक ओलंपिक नहीं बल्कि कई ओलंपिक जीतेंगे."


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