🙏आज की अनुभूति..🙏
😢विवश-तन, विहल-मन..😢
आज ग़मगीन सा मन है,
कितना संगीन आलम है।
चैन सुक़ून कहाँ गुम हैं,
कितना मजबूर आदम है।।
अज़ब-सी छायी वीरानी,
ग़ज़ब हैं ख़ौफ़ के साये।
कहाँ खोये हैं मयखाने,
कितना तन्हा-सा मौसम है।।
थमेगा! क्या पता कब तक?
"कोरोना-कहर" का ये ज़हर?
भूख से बिलखते बच्चे!!
कहीं पर साँस मध्धम है!!
विवश है हाय!! मेरा मन
जगत की त्राहि त्राहि में।
इबादत में कमी है या
कि "सिद्धि साधना कम है??
नेमतें बरसा दे या रब!
कर दे दुनिया पे अपना करम।
ज़र्रा–ज़र्रा फिर रोशन कर
सब कुछ तेरा ही करम है।
श्रद्धा "सिद्धि"