राम नाम के अंक ते, शून्य होई बहुमोल।

नाम राम कथा 208
रामनामाकंनम् विजयते""
श्री रामस्वरूपाय श्रीरामनामविग्रहायै नमः।
राम नाम के अंक ते, शून्य होई बहुमोल।
उठत बैठत सोवत जागत रामराम तू बोल।।
परमात्मा का महा स्वरूप महा शून्य ही हैं। 
और शून्य तो शून्य ही हैं साहब,जितने भी शून्य एकत्रित करलो, जोडलो,घटालो, शून्य तो शून्य ही रहेगा। 
अतः कहा हैं :-पुर्णः पुर्णमिदम,पुर्णात,पुर्णमुदच्यते। आदि:-
कहा गया हैं, रामजी पूर्ण हैं, पर रामजी का यह स्वरूप, परमयोगियों को भी सहज समझ नहीं आ पाता, कितनी कितनी योगसाधनाएं करते आरहे हैं, ऋषि मुनि पर, ..........
परंतु रामनाममहाराज की शरण में जाने से सब कुछ सहज ही नहीं बल्कि अत्यंत सहज हो जाता हैं, ब्रह्मराम से एकाकार,होना, ब्रह्मराम को अनुभूत करना, ब्रह्मराममय होजाना, । क्योंकि जो जिस अवस्था में हैं उसी अवस्था से उसमें समाहित होते ही एककार होजाने में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं रहता। जल का जल में, घी का घी में, तेलका तेल में मिलना अति सहज हैं। पर कोई घी तेलको मिलाये,या तेलको पानी में मिलाये तो यह विजातीय मेल बैठता नहीं, कोई भले मिलाकर जबरन एक करलें परंतु उनका एकरस होना एकाकार होना असहज हैं। 
अतः राम का रामसे एकाकार होना सजातीय हैं। 
राम अर्थात आत्माराम,का ब्रह्मराम,और ब्रह्मराम का विश्वात्माराम, की एकरसता को अनुभूत करने में कोई व्यवधान नहीं ,अतिकठोर साधना भी नहीं, बस प्रेम और प्रेम पूर्वक रामनामाकंन ।
राम नाम का प्रताप तो ऎसा महाप्रबल प्रताप हैं कि, उस महा शून्य सहज स्वरुप ब्रह्मात्माराम का भी महत्व दसगुणा बढा देता हैं। 
हां दस गुणा ,।। 
शून्य अर्थात वो निर्गुण निराकार ब्रह्म ,उसके साथ राम नाम का अंक (१) लगा दिया जाये तो, उसका सगुण साकारब्रह्म स्वरुप प्रकट होजाता हैं। 
गोस्वामीजी ने लिखा।
",नाम राम को अंक हैं सब साधन हैं सून।
अंक गये कछु हाथ नहीं अंक रहे दस गून।।
अब शून्य जो सबकुछ होते हुए भी अमुल्य हैं परंतु साथ में रामनाम रूपी एक का अंक लगा दिया जाये तो ? उसका मोल होगया ,जो अनमोल था, अब मोलवाला होगया, कितनी विचित्र बात हैं, जो सबकुछ हैं सर्वेसर्वा हैं, उसका कोई मोल नहीं समझ आता पर उसके साथ उसका ही नाम जोड़ दिया जाये तो उसका मोल होजाता हैं, और वो भी जो मोल हैं उससे भी दसगुणा अधिक मोल होजाता हैं। 
जितने भी शून्य. संग्रह किया जाये, वो शून्य ही हैं, पर अंक साथ लगते ही, मोल होजाता हैं।
(००००००). (१००००). दोनो अवस्था में एक का मोल हैं जिसमें एक का अंक प्रयोग में आरहा,और जिसमें अंक रहित शून्य हैं उनका कोई मोल नहीं । 
तो गोस्वामी जी ने लिखा कि, यह जगत में हम चाहें जितने भी सांसारिक पदार्थ एकत्रित करलें पर उनका मोल शून्यमात्र ही हैं और सदा शून्य ही रहने वाला हैं, पर यदि,प्रभुकृपा होजाये, प्रेमभाव जाग्रत होजाय और रामनाम घट में बैठ जाये, या जबरन भी रामनाम जप अपना लिया जाये, तो मोल दसगुणा अधिक होजाने वाला हैं।
यह इतना सहज सरल गणित हैं, जिसको बच्चे से बच्चा भी समझ सकता हैं। 


तो इस कलिकाल में राम का नाम अपना लिया जाये, बस‌ और सप्रेम अपना लिया जाये, तो दस गुणा ज्यादा प्रतापधारी, और उसको भी मौखिक जाप के साथ लिखित जाप के रूपमें अपना लिया जाये तो उससे सोगुणा ज्यादा कल्याणकारी, ।
तो कुल मिलाकर होजाता हैं, हजार गुणा ज्यादा कल्याणकारी, ।
रामजी की एक अतिविशिष्ट कृपा हमारे पर और हो रखी हैं, कि, हम लोग कलिकाल में जनमे हैं, तो इस कलिकाल में कठोर साधनाओं के स्थानपर मात्र राम राम से ही सबकुछ हासिल हो जाता हैं। जो अन्ययुगों में अति कठोर साधना उपरान्त प्राप्त या अनुभूत होता था। वो यहां रामनाम गाकर ही बेडा पार।
कलिजुग सम जुग आन नहीं जो नर कर विशवास ।
गाई राम गुण गन विमल भव तर बिनही प्रयास।।
मात्र राम ,रामका नाम,रामनाम के गुणगान गाकर भी भवसागर तैर सकता हैं। 
सहज तैरना होजाता, हैं पर जिनको राम गुण गान गाकर तैरने में भी भय लगता हों तो फिर मात्र रामनामाकंन ही करो। क्योंकि तैरने में तो हाथों में बल भी चाहिए। तैरते हुए थकान भी आ सकती हैं, बिकच सागर में कहां आराम करो ?
परंतु रामनाम की महिमा अलग है।
"""""" नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं"""
राम नाम लेने से, रामनामाकंन करने से तो यह भव सागर सूख ही जाता हैं, न तैरने की जरूरत न नाॅव की न जहाज की ,किसीकी कोई आवश्यकता नहीं, और जहां बैठे वहीं ,जब सागर ही सूख गया तो फिर वही सब कुछ उजागर होजाने वाला हैं, न जाना हैं न किसीको आना हैं।
तो बस रामनामाकंन करो, करो ,करो, और कराओ।
फिर याद करलो कि,
नाम राम को अंक हैं, साब साधब हैं सून।
अंक गये कछु हाथ नहीं, अंक रहे दस गून।।
, राम नाम महाराज की सहज शरण में सहज शरणागत हो जाओ, । बस फिर जो करना है वो राम नाम महाराज को करना हैं,अपने को कुछ नहीं । 
ध्यान रखना, कि, कृष्णजी के पास स्वयं जाना पडता हैमन, और रामजी स्वयं चलकर अपने भक्तोंको दर्शन देते हैं। 
दोनो के इतिहास देखलो, रामजी ने सबको जा जा कर उनके आश्रम उनके निवास पर दर्शन दिये, पर कृष्ण जी के पास स्वयं को अपने प्रयासों,अपने साधनो से जाना पडा़। 
अतः रामनाम के प्रबल प्रताप को जानो और रामनामाकंन को अपनाओ।
जय सियाराम।


Popular posts
भगवान पार ब्रह्म परमेश्वर,"राम" को छोड़ कर या राम नाम को छोड़ कर किसी अन्य की शरण जाता हैं, वो मानो कि, जड़ को नहीं बल्कि उसकी शाखाओं को,पतो को सींचता हैं, । 
Image
अगर आप दुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा दुखी रहेंगे और सुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे
Image
बैतूल पाढर चौकी के ग्राम उमरवानी में जुआ रेड पर जबरदस्त कार्यवाही की गई
Image
ग्राम बादलपुर में धान खरीदी केंद्र खुलवाने के लिये बैतूल हरदा सांसद महोदय श्री दुर्गादास उईके जी से चर्चा करते हुए दैनिक रोजगार के पल के प्रधान संपादक दिनेश साहू
Image
मध्यप्रदेश के मेघनगर (झाबुआ) में मिट्टी से प्रेशर कुकर बन रहे है
Image