🙏 *मैनूं मेरे मालिका औकात विच्च रक्खीं* 🙏
बहुत सालों के बाद दो दोस्त रास्ते में मिले । धनवान दोस्त ने अपनी आलीशान गाड़ी साइड में रोकी और गरीब दोस्त से कहा चल इस गार्डन में बैठकर दिल की बातें करते हैं । चलते चलते उस अमीर दोस्त ने अपने गरीब दोस्त को बहुत गर्व से कहा :
*आज तेरे और मेरे में बहुत फर्क है*
हम दोनों एक साथ पढ़े, साथ ही बड़े हुए लेकिन देखों आज मैं कहाँ पहुच गया और तूँ तो बहुत पीछे रह गया ?चलते चलते गरीब दोस्त अचानक रुक गया । अमीर दोस्त ने पूछा क्या हुआ ? गरीब दोस्त ने कहा, तुझे कुछ आवाज सुनाई दी ?
*अमीर दोस्त पीछे मुड़ा और पाँच का सिक्का उठाकर बोला ये तो मेरी जेब से गिरे पाँच के सिक्के की आवाज़ थी ।* लेकिन गरीब दोस्त एक काँटे की छोटी सी झाड़ी की तरफ गया, जिसमें एक तितली फँसी हुई थी और छूटने के लिये पँख फडफडा रही थी । गरीब दोस्त ने उस तितली को धीरे से काँटों की झाड़ी से बाहर निकला और आकाश में उड़ने के लिये आज़ाद कर दिया ।
*अमीर दोस्त ने बड़ी हैरानी से पुछा, तुझे इस तितली की आवाज़ कैसे सुनाई दी?*
*गरीब दोस्त ने बड़ी नम्रता से कहा* "तुझ में और मुझ में बस यही फर्क है तुझे *केवल "धन" की आवाज़ सुनाई* देती है और मुझे *दुखी "मन" की आवाज़ें भी सुनाई* देती हैं, जिससे मुझे *उनकी सेवा करने का मौका मिलता है ।*
*"हे प्रभु" !*
मुझे इतनी ऊँचाई न देना कि
*अपनी धरती ही पराई लगने लगे ।*
इतनी खुशियाँ भी ना देना कि
*दूसरों के दुःखों पर हँसी आने लगे ।*
मुझे नहीं चाहिए ऐसा भाव कि
*किसी की तरक्की को देख जल-जल मरूँ ।*
मुझे ऐसा ज्ञान भी न देना,
*जिसका अभिमान होने लगे*
मुझे ऐसी चतुराई भी न देना
*जो लोगों को छलने लगे*
मुझे ख्वाहिश नहीं
*बहुत मशहूर या बहुत अमीर होने की ।*
एक *नेक इन्सान* के रूप में
*सब मुझे पहचानते हों*
*बस इतना ही काफी है ।*