कोरोना: दूसरे राज्य में फंसे बेटे को घर लाने के लिए एक मां ने स्कूटी से किया 1400 किमी. का सफर तेलंगाना से आंध्र प्रदेश चली गईं.

अपने बच्चे के लिए मां के सामने बड़ी से बड़ी मुश्किल भी छोटी पड़ जाती है. कोई भी बाधा जैसे उसके प्यार के आगे टिक नहीं पाती. ये एक मां का दृढ़ निश्चय और प्यार ही था कि रज़िया बेगम लोंकडाउन में 1400 किमी. अकेले स्कूटी चलाकर अपने बेटे को लेने तेलंगाना से आंध्र प्रदेश चली गईं. वो दिन-रात स्कूटी चलाती रहीं, सीमा पर पुलिस भी मिली, रास्ते में जंगल और सुनसान सड़कें आईं लेकिन वो रुकी नहीं. उन्हें तो बस अपने बेटे के पास पहुंचना था. तेलंगाना की रहने वाली रजिया बेगम का बेटा आंध्र प्रदेश के नेल्लूर में फंस गया था जो उनके घर से 700 किमी. दूर है. रजिया बेगम ने अपने बेटे के लिए आने-जाने का 1400 किमी. का रास्ता स्कूटी से अकेले तय किया. लॉकडाउन में फंस था बेटा


रज़िया बेगम बताती हैं, “निज़ामुद्दीन लॉकडाउन से 15 दिन पहले ही नेल्लूर चला गया था. वो जगह अच्छी लगी तो कुछ दिन वहीं ठहर गया था. लेकिन, तभी लॉकडाउन हो गया. पहले लगा था कि लॉकडाउन खत्म हो जाएगा लेकिन अब ये और लंबा हो गया. इसलिए मैंने सोचा कि अपने बेटे को वहां से लाना ज़रूरी है." “मुझे बहुत चिंता हो गई. मेरा बेटा वहीं रह गया था और मैं यहां पर थी. मुझे पता भी नहीं था कि वो कब तक वहां फंसा रहेगा. वहां हमारा कोई रिश्तेदार भी नहीं है. नेल्लूर में कोरोना वायरस के मामले भी आए हैं. मुझे लगा कि वो अपना ध्यान कैसे रख पाएगा. घर पर रहेगा तो मेरे सामने होगा. उसे कुछ हो जाता तो मैं यहां क्या करती. इसलिए मुझे उसे लेने जाना ही पड़ा." सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रज़िया मदद के लिए बोधन पुलिस के पास भी गई थीं. एसीपी जयपाल रेड्डी ने बताया कि रज़िया उनके पास आई थीं. उन्हें पुलिस से अनुमति पत्र चाहिए था लेकिन हम वो नहीं दे सकते थे. इसके बाद वो खुद ही स्कूटी से चली गईं. रज़िया को कार से जाने के लिए भी बोला गया था लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया. वह बताती हैं कि लॉकडाउन के समय पर कोई इतनी दूर जाने के लिए तैयार नहीं होता. फिर कार ले जाने पर हाईवे पर पुलिस जाने देने में ज्यादा दिक्क़त करती है. स्कूटी के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. 50 साल की रज़िया बेगम 25 साल से स्कूटी चला रही हैं. वह पहले भी स्कूटी से हैदराबाद जाया करती थीं. इसलिए वो मानती हैं कि ये काम उनके लिए असंभव नहीं था. उन्होंने 1400 किमी. की दूरी के बारे में नहीं अपने बेटे के बारे में सोचा और फिर सोमवार (06 अप्रैल) सुबह नेल्लूर के लिए निकल पड़ी.



रज़िया बताती हैं, “मैं पेट्रोल पंप पर 15 से 20 मिनट रुकती. वहीं पानी पीती और ईंजन को ठंडा होने देती. सोमवार (06 तारीख) देर शाम मैं तेलंगाना-आंध्र प्रदेश की सीमा पर पहुंची. वहां पुलिस वालों ने मुझे रोका और वापस जाने के लिए बोला. लेकिन, मैंने उन्हें बताया कि मैं कहां से आ रही हूं और आगे कहां जाना है. मैंने बताया कि मेरे बच्चों के पिता भी नहीं हैं. उनकी मां-बाप दोनों मैं ही हूं. मुझे बेटे को लेने जाना ही होगा." रज़िया बेगम सोमवार सुबह छह बजे अपने घर से निकली थीं. अगले दिन मंगलवार सुबह सात बजे वो नेल्लूर अपने बेटे के पास पहुंच गईं. फिर शाम को चार बजे निकलीं और बुधवार दिन में बोधन आ गई.


वह बताती हैं कि उन्होंने अपने बाक़ी दो बच्चों और रिश्तेदारों को भी नहीं बताया नहीं था कि वो इतनी दूर जा रही हूं. वह स्कूल का काम बोलकर घर से निकली थीं. हालांकि, बेटे के पास पहुंचकर उन्होंने घर में सब बता दिया था.


 


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