कोरोना वायरस से संक्रमित 93 साल के एक शख़्स का इलाज केरल में किया गया है और वो अब कोरोना टेस्ट में नेगेटिव पाए गए हैं. उनकी 88 साल की पत्नी भी कोरोना संक्रमित होने के बाद अब ठीक हो चुकी हैं. ये पहला ऐसा मामला नहीं है, इतने उम्रदराज लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक़, कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे ज्यादा ख़तरा उन लोगों को है जो 60 साल या इससे अधिक उम्र के हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, दुनियाभर के 204 देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में हैं. आठ लाश्व से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और अब तक 42000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. अब तक डेढ़ लाश्व लोगों का इलाज भी किया जा चुका है. भारत में अब तक कोरोना वायरस संक्रमण के 1397 मामले सामने आ चुके हैं. अब तक 35 लोगों की मौत हो चुकी है और 123 लोगों का इलाज किया जा चुका है या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है.
कैसे हो रहा है इलाज अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं? कोरोना वायरस के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है. दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं लेकिन फिलहाल जो लोग वायरस संक्रमण की वजह से भर्ती हैं उनका इलाज लक्षणों के आधार पर किया जा रहा है. इनके मुताबिक़, अलग-अलग लक्षणों वाले लोगों के इलाज के लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट बताए गए हैं और दवाओं की मात्रा को लेकर भी सख्त निर्देश हैं. साधारण श्वांसी, जुकाम या हल्के बुखार के लक्षण होने पर मरीज़ को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत नहीं भी हो सकती और उन्हें दवाएं देकर इलाज जारी रश्वा जा सकता है. लेकिन जिन मरीजों को निमोनिया या गंभीर निमोनिया हो, सांस लेने में परेशानी हो, किडनी या दिल की बीमारी हो या फिर कोई भी ऐसी समस्या जिससे जान जाने का ख़तरा हो, उन्हें तुरंत आईसीयू में भर्ती करने और इलाज के निर्देश हैं. दवाओं की मात्रा और कौन सी दवा किस मरीज़ पर इस्तेमाल की जा सकती है इसके लिए भी सख्त निर्देश दिए गए हैं. डॉक्टर किसी भी मरीज़ को अपने मन मुताबिक दवाएं नहीं दे सकते.
मरीज़ों के इलाज के लिए गाइडलाइन अस्पतालों में जो मरीज़ भर्ती हो रहे हैं उन्हें लक्षणों के आधार पर ही दवाएं दी जा रही हैं और उनका इम्यून सिस्टम भी वायरस से लड़ने की कोशिश करता है. अस्पताल में भर्ती मरीजों को आइसोलेट करके रश्वा जाता है ताकि उनके जरिए किसी और तक ये वायरस न पहंचे गंभीर मामलों में वायरस की वजह से निमोनिया बढ़ सकता है और फेफड़ों में जलन जैसी समस्या भी हो सकती है. ऐसी स्थिति में मरीज को सांस लेने में परेशानी हो सकती है. बेहद गंभीर स्थिति वाले मरीज़ों को ऑक्सीजन मास्क लगाए जाते हैं और हालत बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रश्वने की ज़रूरत होगी. एक अनुमान के मुताबिक़, चार में से एक मामला इस हद तक गंभीर होता है कि उसे वेंटिलेटर पर रश्वने की ज़रूरत पड़ती है. बीबीसी की एक रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंगम के वायरोलॉजिस्ट प्रो. जोनाथन बॉल बताते हैं कि अगर मरीज़ को श्वसन संबंधी परेशानी है तो उन्हें सपोर्ट सिस्टम की ज़रूरत पड़ती है. इससे दूसरे अंगों पर पड़ने वाले दबाव से राहत मिल सकती है. मध्यम लक्षण वाले मरीज़ जिनका ब्लड प्रेशर घट-बढ़ रहा है उसे नियंत्रित करने के लिए इंट्रावेनस ड्रिप लगाए जा सकते हैं. डायरिया के मामलों में फ्लुइड (तरल पदार्थ) भी दिए जा सकते हैं. साथ ही दर्द रोकने के लिए भी कुछ दवाएं दी जा सकती हैं. सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर सुधीर मेहता का कहना है कि डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर की गाइडलाइंस के तहत ही मरीजों का इलाज चल रहा है.
क्या एचआईवी की दवा कारगर है? विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस और एचआईवी वायरस का एक जैसा मॉलिक्युलर स्ट्रक्चर होने के कारण मरीजों को ये एंटी ड्रग दिए जा सकते हैं. एचआईवी एंटी ड्रग लोपिनाविर (LOPINAVIR) और रिटोनाविर (RITONAVIR) एंटी ड्रग देकर जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में तीन मरीजों का इलाज किया गया और वो कोरोना के संक्रमण से नेगेटिव हुए. इसे रेट्रोवायरल ड्रग भी कहा जाता है. इन दवाओं का इस्तेमाल साल 2003 में सार्स (SARS) वायरस के इलाज में भी किया गया था. दरअसल उस वक़्त इस बात के सबूत मिले थे कि एचआईवी के मरीज़ जो ये दवाएं ले रहे थे और उन्हें सार्स से पीड़ित थे, उनका स्वास्थ्य जल्द बेहतर हो रहा था.
कब तक आ सकती है वैक्सीन? कोरोना वायरस के इलाज को लेकर वैक्सीन कब तक आएगी इसकी कोई स्पष्ट सीमा नहीं है. कई देश कोरोना वायरस से निपटने के लिए दवा बनाने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई है. इसके पहले फैले सार्स वायरस को लेकर भी अब तक कोई सटीक वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है. ऐसे में कोरोना की दवा जल्द बन जाएगी इस पर संशय की स्थिति है. दूसरी ओर कुछ लोग ये सवाल भी उठा रहे हैं कि जब लक्षणों के आधार पर इलाज से कोरोना वायरस संक्रमण को दूर किया जा सकता है और लोग ठीक भी हो रहे हैं तो फिर इसके लिए अलग से दवा बनाने की क्या ज़रूरत है.इसके जवाब में विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर कोरोना वायरस का इलाज अमॉलिया गया तो भविष्य में इसे फैलने से रोका जा सकता है. आने वाले समय में ये महामारी दुनिया को घुटनों पर न ला पाए इसके लिए ज़रूरी है कि कोरोना वायरस की दवा जल्द से जल्द बना ली जाए. डॉ. एस.के सरीन कहते हैं, "ये वायरस तेज़ी से अपना आकार बदल रहा है ऐसे में इसका इलाज और इसके लिए दवा बनाना आसान नहीं है. दूसरी दवाएं इस पर असर कर रही हैं लेकिन वो सटीक नहीं हैं. हेल्थकेयर वर्कर्स को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दी जा रही है, कुछ हद तक इसका इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि उन्हें संक्रमण से दूर रश्वा जा सके. लेकिन अगर सटीक इलाज की बात करें तो अब तक कुछ नहीं है." उन्होंने कहा कि एंटी-वायरल, एंटी बायोटिक्स के जरिए लोगों का इलाज किया जा रहा है. खासकर वो लोग जो आईसीयू में भर्ती हैं. लेकिन जो लोग अपने आप ठीक हो रहे हैं वो इम्युनिटी की वजह से हो रहे हैं.
भारत में क्या हैं हालात? डॉ. एस.के सरीन कहते हैं कि बाकी दुनिया के मुकाबले भारत में अभी कोरोना संक्रमण के मामलों की शुरुआत हुई है और आने वाले कुछ हफ़्तों में मामले बढ़ सकते हैं. दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में एक साथ कई लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण पाए जाने और कुछ लोगों की मौत पर वो चिंता जताते हैं. डॉ. सरीन का मानना है कि वायरस रिप्रोडक्शन रेट अगर हम नियंत्रित कर पाए तो बड़ी कामयाबी होगी. इसके लिए लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनेटाइजेशन काफ़ी महत्वपूर्ण है. वो कहते हैं कि अगर वायरस संक्रमण बढ़ता है तो हालात बिगड़ सकते हैं. किसी एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे सामान्य व्यक्ति में संक्रमण का ख़तरा काफ़ी है और कम्युनिटी ट्रांसमिशन के मामले बढ़ सकते हैं.