माँ को समर्पित कविता
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मां की महिमा---
वो नादान सा बचपन
और तुम्हारा साथ माँ
क्या लिखूँ तुमपर माँ
स्वयं तुम काव्य हो छंदों भरी
कहानी हो व्यथा भरी
संस्मरण हो अपनों के सपनो की
कैसे तुम्हे बांटू में
तुमने जिया मुझमेँ अपना बचपन
जो तुम बाबुल की देहरी पर
कमसिन उम्र का छोड़ आई
तुमने सपने संजोकर अपने
पूर्ण किये मुझमेँ
जो कभी तुमने देखे थे अपनी
बचपन के खिलौनो में
संस्कार और सभ्यता मुझमेँ तुमने
साम दाम दंड भेद प्रित सहित
कूटकर भर दी
क्योंकि वास्तविकता से पाला तुम्हारा
पड़ता आया
माँ आज उम्र के हर मोड़ पर
तुमने साथ दायित्वों कर्तव्यों
का निभाया
पर जाने क्यों तुम अब साथ नही माँ
अकेला मधुकुंज बिन तुम्हारे
हरा भरा नही रहता अब माँ
थपकियों का स्पर्श यादों की लोरी
वो तुम्हारा मुझे चूमना
और मेरा तुम्हारे आँचल में छुप जाना
वो नादाँ सा बचपन
अधेड़ावस्था में अधूरा सा लगता हे
लौट आओ नादाँ से बचपन में
चलो माँ तुम और में
सङ्ग जियें ।।
स्वरचित
श्रीमती माधुरी सोनी *मधुकुंज*
अलीराजपुर