"अतिथ शिक्षक राजेश किशोर भार्गव की जुबानी - अब हताश और निराश हो गया हूँ मामाजी शायद आप मेरा ट्वीट देखेंगे उससे पहले मेरी विदाई हो गई होगी"
कोरोना काल में जिस तरह देश के मजदुर, किसान, छोटे व्यापारीगण, वकील, पत्रकार आर्थिक तंगी के हालात से गुजर रहे थे ठीक उसी तरह मध्यप्रदेश के अतिथि शिक्षक भी आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे हालात इतने बिगड़ गये थे कि कई शिक्षक तो अपने परिवार को दो वक्त के भोजन का इंतजाम भी नहीं कर पा रहे थे, सरकार और सामाजिक संस्थाओं ने देश के मजदुर वर्गो एवं असहाय लोगों को खाने और राशन की मदद तो पहुंचाई लेकिन इन अतिथि शिक्षकों के तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया अतिथि शिक्षक परेशान तो थे लेकिन ये अपनी मजबुरी किसी से बयां भी नहीं कर पाये क्योंकि ये शिक्षक थे जो कि विद्वान वर्ग से आते हैं
भोपाल - कोरोना काल में जिस तरह देश के मजदुर, किसान, छोटे व्यापारीगण, वकील, पत्रकार आर्थिक तंगी के हालात से गुजर रहे थे ठीक उसी तरह मध्यप्रदेश के अतिथि शिक्षक भी आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे हालात इतने बिगड़ गये थे कि कई शिक्षक तो अपने परिवार को दो वक्त के भोजन का इंतजाम भी नहीं कर पा रहे थे, सरकार और सामाजिक संस्थाओं ने देश के मजदुर वर्गो एवं असहाय लोगों को खाने और राशन की मदद तो पहंचाई लेकिन इन अतिथि शिक्षकों के तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया अतिथि शिक्षक परेशान तो थे लेकिन ये अपनी मजबुरी किसी से बयां भी नहीं कर पाये क्योंकि ये शिक्षक थे जो कि विद्वान वर्ग से आते हैं अतिथि शिक्षकों के मई जून के मानदेय न मिलने से और बेरोजगारी की हालत में परेशान अतिथि शिक्षक ने मुख्यमंत्री शिवराज सिं चौहान को ट्वीट कर अपनी व्यथा सुनाई अतिथ शिक्षक राजेश किशोर भार्गव की जुबानी - अब हताश और निराश हो गया हूँ मामाजी शायद आप मेरा ट्वीट देखेंगे उससे पहले मेरी विदाई हो गई होगी कोरोना काल में अतिथि शिक्षकों के मई जून के मानदेय न मिलने से और बेरोजगारी की हालत में परेशान अतिथि शिक्षक ने मुख्यमंत्री शिवराज सिं चौहान को ट्वीट कर अपनी व्यथा सुनाई अतिथ शिक्षक राजेश किशोर भार्गव की जुबानी - अब हताश और निराश हो गया हूँ मामाजी शायद आप मेरा ट्वीट देखेंगे उससे पहले मेरी विदाई हो गई होगी कोरोना काल में जिस तरह देश के मजदुर, किसान, छोटे व्यापारीगण, वकील, पत्रकार आर्थिक तंगी के हालात से गुजर रहे थे ठीक उसी तरह मध्यप्रदेश के अतिथि शिक्षक भी आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे हालात इतने बिगड़ गये थे कि कई शिक्षक तो अपने परिवार को दो वक्त के भोजन का इंतजाम भी नहीं कर पा रहे थे, सरकार और सामाजिक संस्थाओं ने देश के मजदुर वर्गो एवं असहाय लोगों को खाने और राशन की मदद तो पहुंचाई लेकिन इन अतिथि शिक्षकों के तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया अतिथि शिक्षक परेशान तो थे लेकिन ये अपनी मजबुरी किसी से बयां भी नहीं कर पाये क्योंकि ये शिक्षक थे जो कि विद्वान वर्ग से आते हैं