माई के श्लोक में कहा है (तुम्मेका गतिर देवी निस्तार नौका नमस्ते जगत तारिणी त्राहि दुर्गे )
एक अन्य अर्थ है रक्षक या निवारणी, माई तो दुखों का निवारण करती हैं वह सद्गति प्रदान करती है स्वामी जी का एक ही आदेश था कि जो मंत्र मिला है उसे ही जपते रहो मार्ग मिल जाएगा यह अमृत शब्द हमारे पूज्य पिताजी को महाराज ने अपने मुख से ही कहे थे और वह एक ही मंत्र निरंतर करते रहे श्री स्वामी स्मृति ग्रंथ में यह ब्रह्म वाक्य लिखा है जय माई