चुनाव नतीजों से ही यह पता चल सकेगा कि कमलनाथ इन वर्गों के बीच पार्टी का समर्थन यथावत रख पाते हैं या नहीं।

चुनाव अभियान में जहां एक और कांग्रेस अपनी सरकार की उपलब्धियों को मतदाताओं के सामने रखेगी तो वहीं दूसरी ओर भाजपा सरकार और खासकर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में हुए घपले घोटालों और कथित जनविरोधी निर्णय और जमीनी स्तर पर और कथित जनविरोधी निर्णय और जमीनी स्तर पर काम ना होने तथा केवल घोषणाएं होने को लेकर उसे कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगी


मध्यप्रदेश विधानसभा के होने वाले 27 उपचुनावों में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान और मुद्दों को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पार्टी का चुनावी अभियान भाजपा सरकार के 15 साल के शासनकाल और अपनी सरकार के 15 माह के कार्यकाल पर केंद्रित कर चलाने की दिशा में कदम बढ़ाना चालू कर दिया है। इसके साथ ही दलबदल करा कर खरीद-फरोख्त की साजिश के तहत भाजपा ने जनता द्वारा चुनी गई सरकार को गिराने का जो काम किया है उसे भी जोर-शोर से उठाया जाएगा


चुनाव अभियान में जहां एक और कांग्रेस अपनी सरकार की उपलब्धियों को मतदाताओं के सामने रखेगी तो वहीं दूसरी ओर भाजपा सरकार और खासकर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में हुए घपले घोटालों और कथित जनविरोधी निर्णय और जमीनी स्तर पर काम ना होने तथा केवल घोषणाएं होने को लेकर उसे कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगी। फिर से शिवराज सरकार बनने के बाद भी नए आरोपों के तीर शिवराज सरकार बनने के बाद भी नए आरोपों के तीर भी कांग्रेस छोड़ेगी ही। भाजपा भी 15 साल की अपनी सरकारों की और उसके बाद फिर से बनी शिवराज सरकार की उपलब्धियों का बखान जोर शोर से करेगी तो वहीं भाजपा कांग्रेस पर सभी वर्गों से वायदा खिलाफी करने और भ्रष्टाचार के आरोप लगाएगी।


2018 के विधानसभा चुनाव में किसानों की कर्ज माफी का वायदा तथा आदिवासी और दलित समुदाय ने उन क्षेत्रों में कांग्रेस के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त किया था जहां पर उपचुनाव होना हैआधा दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी मतदाता बड़ी संख्या में हैं। विधानसभा के 2018 के चुनाव में इस वर्ग का झुकाव कांग्रेस की ओर पूर्व के 15 सालों की तुलना में अपेक्षाकृत काफी अधिक देखने में आया था। नेपानगर, अनूपपुर, बदनावर, बम्होरी, मुंगावली सहित कुछ और विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। कमलनाथ के लिए इन मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने का अवसर विश्व आदिवासी दिवस का मिल गया और उन्होंने पहली बार आदिवासी विधायकों के साथ वर्चुअल बैठक की तथा 15 महीनों में जो कुछ किया उसको बताने के साथ ही साथ उनके मन में यह कहते हुए उम्मीदें जगा दी कि उपचुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में वापस आती है तो नौकरियों में आदिवासी समुदाय के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी साथ ही आदिवासियों के हित में तत्काल निर्णय लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी


की प्रक्रिया शुरू की जाएगीइस बैठक में कमलनाथ ने आदिवासियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर उनके निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से विचार मंथन कियाअपनी सरकार की उपलब्धियां बताते हुए कमलनाथ ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को शासकीय अवकाश की घोषणा की, इसी प्रकार पहली बार वर्ष 2020 को हमने आदिवासी कला वर्ष घोषित किया और गोंडी भाषा को पाठयक्रम में शामिल कियाहमने कोशिश की है कि आदिवासी समाज के जिन लोगों ने स्वाधीनता आंदोलन में भूमिका निभाई उन महान नेताओं के स्मारक हों तथा आदिवासी देव स्थानों का संरक्षण सरकार करे। ना केवल साहूकारी प्रथा को समाप्त किया गया बल्कि यह भी व्यवस्था की गई कि यदि आदिवासियों को आकस्मिक ऋण की जरूरत पड़ती है तो उन्हें 10000 तक का ऋण सरकार की ओर से प्राप्त हो। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कांग्रेस समाज के कमजोर वर्गों के हित में काम करने के लिए संकल्पित है और आदिवासी वर्ग की नई पीढ़ी की आशाओं को पूरा करने के लिए पार्टी लड़ाई लड़ने का काम करेगी


भाजपा पर इसका असर होना ही था और उसने भी प्रतिक्रिया देने में देर नहीं की। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा ने कांग्रेस के रोजगार वाले बयान पर पलटवार करते हुए पूछा कि कमलनाथ सरकार ने अपने 15 माह के कार्यकाल में क्या किया? उन्होंने कमलनाथ को सलाह दी कि उन्हें आदिवासियों की चिंता करने की जरूरत नहीं है,क्योंकि उनकी चिंता भाजपा सरकार कर रही है। शर्मा ने तंज किया कि कमलनाथ के सरकार बनाने के सपने साकार नहीं होंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों को जल जंगल और जमीन का प्रहरी निरूपित करते हुए कहा कि मैं और मध्य प्रदेश आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए संकल्पित है


और अंत में........... 27 विधान सभा क्षेत्रों में


27 विधान सभा क्षेत्रों में से सात क्षेत्र आरक्षित हैं और इसके अलावा कुछ और क्षेत्रों में आदिवासी और दलित वर्ग निर्णायक भूमिका में हैं इसलिए भाजपा का प्रयास है कि फिर से इन वर्गों को भाजपा की ओर मोड़ लिया जाए जबकि कांग्रेस की प्राथमिकता इन वर्गों के बीच जो उसका जनाधार बढ़ा है वह यथावत रहे। इसलिए दोनों ही दल अपनी पूरी ताकत इन्हें अपनी ओर आकर्षित करने में झोंकने वाले हैं। प्रदेश में कुल 70 विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। बीते 15 सालों में आदिवासी वर्ग भाजपा के साथ खड़ा रहा किंतु 2018 के विधानसभा चुनाव में उसका झुकाव कांग्रेस की तरफ म्ड़ गया और उसने डेढ़ दशक की भाजपा सरकार की जगह कांग्रेस की सरकार बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 46 आदिवासी सीटों में से कांग्रेस ने 30 पर सफलता पाई भाजपा को 15 स्थानों पर ही सफलता मिल पाई। अनुसूचित जाति की 30 आरक्षित सीटों में से भाजपा को 18 और कांग्रेस को 12सीटें मिलीं।कांग्रेस को उसकी अपेक्षा से अधिक सफलता मिली। यही कारण है कि दोनों ही दल अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे। चुनाव नतीजों से ही यह पता चल सकेगा कि कमलनाथ इन वर्गों के बीच पार्टी का समर्थन यथावत रख पाते हैं या नहीं


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